सर्वविदित है कि पूँजीवाद का एक मात्र मकसद
मुनाफाखोरी है और पूँजीवाद में जितना ज्यादा मुनाफा बढ़ेगा, जितना विकास दर बढ़ेगी उतना ही अधिक
प्राकृतिक संसाधनों का विनाश होगा और
प्रदूषण बढ़ेगा। यानी पूँजीवाद का विकास और पर्यावरण का विनाश दोनों साथ-साथ चलते
हैं। मोटर कार उद्योग के उदाहरण से इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है। 1930 से
1950 के दशक के बीच अमरीकी ऑटो उद्योग ने वहाँ की सरकार, स्टैंडर्ड ऑयल कम्पनी और फायरस्टोन टायर के साथ
मिलकर वहाँ परिवहन के पुराने ढाँचे को तहस-नहस कर दिया। रेल और सार्वजनिक परिवहन
के मद में सरकार ने बजट बहुत ही कम कर दिया और राजमार्गों के निर्माण पर भारी पैसा
खर्च किया। दूसरी ओर ऑटो कम्पनियों ने बिजली से चलने वाली स्ट्रीट कार की कम्पनी
को खरीद लिया और उनको बन्द करके उनकी जगह बसें चलवानी शुरू की। 1936 से 1955 के
बीच वहाँ स्ट्रीट कारों की संख्या 40,000 से घटकर 5,000 रह गयी। अमरीका में इस
परिघटना को ‘‘जनरल मोटर का स्ट्रीट कार षड्यंत्र’’ या अमरीकी स्ट्रीट कार घोटाला के नाम से जाना
जाता है। जनरल मोटर कम्पनी ने अपने एकाधिकार का प्रयोग करते हुए बाद में सार्वजनिक
बसों को धीरे-धीरे अप्रभावी बना दिया और निजी वाहनों को प्रोत्साहित किया। इसी का
नतीजा है कि आज अमरीका में माल ढुलाई और यात्रियों की आवाजाही का 90 प्रतिशत काम
निजी वाहन करते हैं। यह जानते हुए भी कि निजी परिवहन पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक
है,
क्योंकि यह भारी मात्र में कार्बन डाइ
ऑक्साइड छोड़ता है और साथ ही काफी खर्चीला भी है, कुछ एक कम्पनियों के भारी मुनाफे को बनाये रखने
के लिए इसे बढ़ाबा दिया जा रहा है। 1991 से वैश्वीकरण उदारीकरण के नाम पर हमारे देश
में भी इसी अमरीकी मॉडल को अपनाया जा रहा है। सस्ते और कम प्रदूषण फैलाने वाले
रेलवे की जगह सड़क परिवहन और निजी यातायात को बढ़ावा देना इसी का नतीजा है जो गरीब
देश की गरीब जनता के लिए असहनीय बोझ है।
जनरल मोटर, फोर्ड और क्रिस्लर जैसी दैत्याकार मोटर-वाहन
कम्पनियाँ अपने मुनाफे की हवस में प्रदूषण की परवाह किये बिना अपनी बिक्री बढ़ाती
जा रही है। आज अमरीका में बिकनेवाली हर मोटरगाड़ी 1908 की टी फोर्ड मोटर से कहीं
ज्यादा प्रदूषण फैलाती है, क्योंकि
छोटे और कम प्रदूषण फैलाने वाले मॉडल से मुनाफा कम होता है। बड़ी गाड़ियाँ, ज्यादा मुनाफा और नतीजा अधिक प्रदूषण। लेकिन
यही कम्पनियाँ कार्बनडाइ ऑक्साइड उत्सर्जन के अनिवार्य मानक को न अपनाने के लिए
अपनी ताकत का इस्तेमाल करती हैं। उन्हीं के दबाव के चलते अमरीका जलवायु परिवर्तन
की हकीकत से ही इन्कार करता है और इसके खतरे को कम करके आँकता है। यही कारण है कि
अमरीका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में स्वैच्छिक रूप से पर्याप्त कटौती करने या
जलवायु परिवर्तन पर अन्तरराष्ट्रीय सहमति बनाने के लिए राजी नहीं है।
No comments:
Post a Comment