Friday, 22 May 2015

टिकाऊ विकास का भ्रम


comicartcommunication.wordpress.com से साभार 
पिछले तीन दशकों से विश्व बैंक यह संदेश प्रसारित कर रहा है कि ‘‘पहले विकास करो’’ और फिर सफाई करो। इसी पूँजीवादी सोच के तहत अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन युक्त तीव्र आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया गया और दावा किया गया कि बड़ी कम्पनियाँ जब खूब दौलत कमा लंेगी तो उसी दौलत के दम पर अधिक कार्बन उत्सर्जन युक्त मौजूदा तकनीक को त्यागकर, कम उत्सर्जन वाली महँगी सौर, वायु और जल र्उ$जा तकनीकों को अपनायेंगी। लेकिन यह सभी दावे खोखले साबित हुए। विकसित देशों की कम्पनियों ने समृद्धि तो हासिल कर ली लेकिन वे उत्सर्जन कटौती के अपने वादे से मुकर गयी। पर्यावरण पर सभी अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन इसके गवाह हैं। क्वेटो प्रोटोकॉल के तहत 5 प्रतिशत उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य रखा गया था लेकिन इनकी कारगुजारियों से अब तक कटौती के बजाय कार्बन उत्सर्जन में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है।
पूँजीवाद के रहते पर्यावरण के मामले में टिकाउ$ विकास सम्भव ही नहीं है। पिछले कुछ समय से 3 प्रतिशत की धीमी रफ्तार वाली, हरियाली युक्त, टिकाउ$ आर्थिक विकास की बातें हो रही हैं। अगर विकास की इसी दर को अपना लिया जाय तो यह 23 साल में दुगनी और अगले 100 सालों में 16 गुनी हो जायेगी। इसकी अनिवार्य परिणति यह होगी कि इसी रफ्तार से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जायेगा। कल्पना कीजिए 100 साल बाद आज से 16 गुना अधिक प्रदूषण और जलवायु संकट, वह भी टिकाउ विकास के नाम पर। क्या यह टिकाउ$ विकास है? तो क्या हम आर्थिक विकास के विरोधी हैं? नहीं, लेकिन आर्थिक विकास के साथ-साथ हमें वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था की आलोचना भी करनी होगी जो जलवायु संकट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। हमें ऐसे विकास को प्रोत्साहित करना होगा जो मुनाफा केन्द्रित न होकर पर्यावरण के लिए कम से कम नुकसानदेह और मानवता के हित में हो। हमें तकनीक और मानव श्रम में श्रम को प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि श्रम केन्द्रित विकास पर्यावरण के लिए कम नुकसानदेह और व्यापक आबादी के लिए लाभदायक होगा। मुनाफा केन्द्रित पूँजीवादी व्यवस्था का लक्ष्य मुट्ठीभर लोगों की समृद्धि को अधिकाधिक बढ़ाना है। यहाँ मुनाफा ही मूसा है, मुनाफा ही पैगम्बर है, मुनाफा ही भगवान है।
मानवता के सामने दो ही विकल्प शेष हैं- या तो मुनाफे के भगवान की पूजा करते हुए पृथ्वी के असंख्य प्राणियों और खुद मनुष्य को विनाश की ओर बढ़ते जाने दें या फिर इस मुनाफे के देवता को विसर्जित करें और जलवायु संकट के स्थायी समाधान के लिए प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्यपूर्ण और समतामूलक समाज के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ें।
हरियाली से आच्छादित वन में जाओ
वन का सौन्दर्य देख मन बहलाओ
फिर आदिवासियों के पास जाओ
उनके सामने
विकास का झुनझुना बजाओ
वे मुग्ध हो सुनेंगे
पेड़ काटो, पौध लगाओ
जंगल, पर्वत, नदियाँ उजाड़कर
कारखाने लगाओ
डॉलर कमाओ
जहरीला धुंआ जब सांस में घुल जाए तो
टिकाऊ विकास पर सेमीनार कराओ.


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