Sunday, 22 September 2019

ओजोन परत की क्षय से बढती बीमारियाँ

आलेख प्रस्तुत करते हुए समर्थ बंसल 

धरती के ऊपरी सतह पर ओजोन की परत होती है, जो हमें पराबैगनी किरणों से बचाती है। लेकिन ओजोन की मात्रा में कमी से यह परत कहीं-कहीं नष्ट हो जाती है। इनसानी शरीर ,पौधों, सागरीय पारितंत्र और पारिस्थितिक चक्र पर इसका भयानक प्रभाव पड़ता है। इन्हीं किरणों के कारण चर्म-कैंसर, मोतियाबिंद जैसे रोग हो जाते हैं और ये किरणें धरती का तापमान बढ़ाकर ग्लोबल वार्मिंग में सहायक होती हैं। 2018 की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार ओजोन परत में सुधार आ रहा है और उम्मीद जताई गयी कि 2030 में गैर-ध्रुवीय उत्तर और 2050 में गैर ध्रुवीय दक्षिण गोलार्ध में यह परत पूरी तरह ठीक हो जायेगी। लेकिन यह महज अनुमान है। सच कुछ और है। कई देशों में सीऍफ़सी का अवैध उत्पादन निरंतर जारी है, जो ओजोन की परत को तेजी से नष्ट करने के लिए जिम्मेदार है। चीन और भारत दो ऐसे देश हैं जहां यह अवैध धंधा अपने पूरे जोर पर है। इन देशों के उद्योगों में ओजोन परत की क्षय के लिए जिम्मेदार गैसों का इस्तेमाल धडल्ले से हो रहा है। उद्योग के मालिक मुनाफा बढाने के लिए इन गैसों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि ये सस्ती पड़ती हैं। 2018 की नासा की रिपोर्ट बताती है कि ओजोन परत में छेद का क्षेत्रफल अंटार्कटिका पर 229 लाख वर्ग किलोमीटर हो गया है।


ओजोन परत क्या है?

ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी सतह पर एक ऐसी परत होती है जो ओक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलाकर बनी होती है। यह मुख्यतः स्ट्रेटोस्फीयर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की दूरी तक स्थित होती है। जब सूर्य की पराबैगनी किरणें ओक्सीजन के अणु (O2) से टकराती है तो वह दो परमाणु (2O) में टूट जाता है, जो बचे हुए  ओक्सीजन के अणु (O2) से जुड़कर ओजोन (O3)  बनाता है।

ओजोन परत की महत्व

ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों को सोख लेती है जो बहुत ज्यादा हानिकारक होती हैं। यह किरणें न केवल मनुष्य के लिए, बल्कि पृथ्वी पर जीवित प्रत्येक जीव के लिए बेहद हानिकारक हैं। यह परत अगर न हो तो सारा रेडिएशन पृथ्वी पर पहुंचकर सभी मनुष्यों और पौधों के डीएनए को नुकसान पहुंचाता है , ग्लेशियर के पिघलने की दर में वृद्धि हो जाती है, और पूरी दुनिया के बंजर रेगिस्तान बनने तथा छोटे-छोटे जीवों और जीवाणु का अस्तित्व खत्म होने की पूरी सम्भावना बन जाती है।

ओजोन परत को हानि पहुंचाने वाली गैसे

क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (सीएफसी), हाइड्रो-क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (एचसीएफसी), हाइड्रो-ब्रोमो-फ्लोरो-कार्बन, हैलोंस, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म गैसें ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं। इन गैसों के स्त्रोत इस तरह हैं--

1.    ये गैसें मुख्यतः निजी व सरकारी गाड़ी, बसों के एयर कंडीशनर, घरों व  बाजार में 
      इस्तेमाल आने वाले फ्रिज से, परफ्यूम आदि एरोसोल स्प्रे से निकलती हैं।
2.    ये द्रावक की तरह इस्तेमाल में लाई जाती हैं।
3.    इनका इस्तेमाल गैर प्रतिक्रियाशील कंटेनर व पाइपों को बनाने में होता है।
4.    क्लोरो-डाईफ्लोरो-मीथेन का इस्तेमाल टेफ़लोन बनाने के लिए किया जाता है, जो नॉन 
      स्टिक कडाही, तवे और अन्य बर्तन बनाने में मुख्य रूप से इस्तेमाल होती है।
5.    ये गैसें सर्जिकल उपकरणों और उपसाधनों को बनाने में इस्तेमाल होती हैं ।
6.    फोम उद्योगों में भी ये गैसें इस्तेमाल होती है।

कैसे ये गैसें ओजोन परत की क्षति के लिए जिम्मेदार हैं

ये गैसें ओजोन (O3) के अणुओं को तोड़कर ओक्सीजन के अणु में बदलाव को तेज कर डालती हैं। एक अनुमान यह बताता है कि इन गैसों से निकला क्लोरिन का एक परमाणु जो फ्री रेडिकल के फार्म में होता है, वह ओजोन के एक लाख अणुओं को ओक्सीजन के अणुओं में बदल देता है।

ओजोन परत की क्षय  के परिणाम व प्रभाव

●     पराबैगनी किरणों के कारण मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव 
      पड़ता है। नॉन-मेलानोमा और मेलानोमा चर्म-कैंसर, मोतियाबिंद आदि बीमारियों की 
      सम्भावना बहुत बढ़ जाती है।
●     पेड़ पौधों के शारीरिक विकास पर और न्यूट्रिएंट्स की विनिमय प्रणाली पर असर पड़ता है।
●     फाइटोप्लांकटोन सागरीय पारितंत्र का आधारभूत जीव है। पराबैगनी किरणों से इनका 
      जीवन दर घट जाता है और मछली, केकड़े, झींगे आदि जीव के विकास पर भी दुषप्रभाव 
      पड़ता है।
●    सभी प्रकार के जैव रासायनिक चक्रों पर प्रभाव पड़ता है जिसके कारण ग्रीन हाउस व 
     अन्य जरूरी गैसों के बनने और टूटने में बड़ा बदलाव आता है। ये सभी बदलाव 
     हमारे जैवमंडल और जलवायु पर भयानक प्रभाव डालते हैं।
●   क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन, हाइड्रो-क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन में बहुत अधिक मात्रा में ग्रीनहाउस प्रभाव 
    को बढ़ा देती हैं, जिसके चलते धरती का तापमान बढ़ता जाता है।

ओजोन परत की क्षय कौन है जिम्मेदार

इन्वारामेंट इन्वेस्टीगेशन एजेंसी की 2016-18  की रिपोर्ट के अनुसार चीन में फोम उद्योगों के लिए मुख्य तौर पर सीएफसी-11 का अवैध उत्पादन होता है। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार, 2012-16 के बीच चीन ने 5,40,000 टन पोलिओल्स का निर्यात रूस, भारत, अमेरिका, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, पाकिस्तान, वेतनाम, बांग्लादेश को किया था। पोलिओल्स से कम पैसे में बेहतर फोम मिलता है। विकसित देशों में अविकसित टेक्नोलॉजी वाले यंत्र इन्हीं गैसों पर निर्भर हैं। इस्तेमाल किए हुए एसी, फ्रीज आदि उपकरणों के भारी निर्यात के चलते भी इन गैसों का उत्सर्जन ज्यादा हो रहा है। ये आयातित उपकरण नये उपकरणों से काफी सस्ते पड़ते हैं। ओजोन परत की क्षय के लिए ऐसी कम्पनियां ही जिम्मेदार हैं, जो क्षरण को बढाने वाली गैसों का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं। पूरे विश्व में ऐसी गैसों का अवैध व्यापार निजी हितों के लिए क्योंकि इस अवैध व्यापार में भारी मुनाफा कमाने का मौक़ा मिलता है।

-- समर्थ बंसल

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