Thursday, 19 September 2019

पिघलते ग्लेशियर सूखती नदियाँ

पिछले कुछ सालों में पूरे विश्व में हुए औद्योगिक विकास के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। पृथ्वी के गर्म होने से दुनिया भर में कई ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यहाँ तक कि कई ग्लाशियर खत्म होने के कगार पर हैं जिससे पर्वतीय क्षेत्रों का जनजीवन प्रभावित हो रहा है। इसके तात्कालिक और दूरगामी प्रभाव मैदानी इलाकों और समुद्र पर भी प्रकट होना शुरू हो चुके हैं।

सेमिनार में आलेख प्रस्तुत करते सुधीर
 

ग्लेशियरों के मरने के कारण 

दुनिया भर में अन्धाधुन्ध औद्योगिक विकास के कारण प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे प्रदूषण का बढ़ जाना लाजमी है। दूसरी तरफ भूमि की पूर्ति के लिए जंगलों को साफ कर वहाँ से खनिज सम्पदा निकले जा रहे हैं, वहाँ कल-कारखाने लगाए जा रहे हैं। फलतः बेतहाशा कार्बन का उत्सर्जन हो रहे हैं और वैश्विक स्तर पर तापमान में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। 1990 से 2000 के बीच तापमान में 0.42 से 0.57 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई थी।2015 तक 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि हो चुकी है। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। अगर वैश्विक तापमान इसी दर से बढ़ता रहा तो बहुत से ग्लेशियर जल्द ही खत्म हो जायेंगे। 

1970 के दशक से हिमालयी क्षेत्र के कई हिस्सों में ग्लेशियर पिघलने शुरू हो गए थे जो बहुत चिंता का विषय है। हिमालय के ग्लेशियर पर अध्ययन कर तैयार की गयी काठमांडू पोस्ट के एक रिपोर्ट (आईसीएमओडी) में यह अनुमान लगाया गया है कि सौ सालों से भी कम समय में भारत में ग्लेशियर कि जगह चट्टान नजर आयेंगे और इसकी वजह से हिन्दू-कुश हिमालयी क्षेत्रों से जुड़े सभी 8 देश प्रभावित होंगे। इस रिपोर्ट में यह बात कही गयी है कि ग्लेशियरों के पिघलने का कारण ग्रीन हाउस गैसों का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन हैं और यदि 2015 के पेरिस समझौते को न मानकर मौजूदा दर से ही इन गैसों को उत्सर्जित किया जाएगा तो 2100 तक हिन्दू-कुश क्षेत्र की एक तिहाई बर्फ पिघल जायेगी। 

ग्लेशियर पिघलने की दर 

हिमालय के 75 प्रतिशत ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघल रहे हैं। इसरो ने 2011 में एक रिपोर्ट जारी करके बताया था कि 1989 से 2004 के बीच हिमालय के ग्लेशियरों का 3.75 प्रतिशत क्षेत्रफल कम हुआ है। इसके पहले इसरो ने 2010 में 1317 ग्लेशियरों का अध्ययन किया था जिसमें यह तथ्य सामने आया कि 1962 से 2010 तक हिमालय के 16 प्रतिशत ग्लेशियर पिघल चुके हैं। 

गंगोत्री ग्लेशियर पिछले कई दशकों से हर साल 18.8 मीटर की दर से पिघल रही है जिससे इसका क्षेत्रफल लगभग 1.15 वर्ग मीटर सिकुड़ गया है। ग्लेशियर के पिघलने की दर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि  गंगा नदी का बहाव ग्लेशियर के नीचे से होने के बजाय सतह के ऊपर से हो रहा है। 

साइन्स एडवांसेज की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि हिमालय के 10 हजार ग्लेशियरों में 60 हजार करोड़ तन के करीब बर्फ मौजूद है और हर साल लगभग 800 करोड़ बर्फ पिघल रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1975 से 2000 के बीच ग्लेशियर हर साल लगभग 10 इंच पिघल रहे थे लेकिन इसके बाद 2003 से 2016 के बीच ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गयी। हिमालय के गंगोत्री, यमुनोत्री, सतोपंथ, चौराबी, भागीरथी, खर्क जैसे ग्लेशियरों का भी अस्तित्व खतरे में है। इसका सीधा प्रभाव भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, भूटान और आस पास के देशों पर पड़ेगा। और इसका नुकसान इन देशों में रहने वाली गरीब जनता को झेलना पड़ेगा। 

बड़े ग्लेशियरों की तुलना में छोटे ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं जिसके कारण समुद्र तल के 10 इंच तक बढ्ने का अनुमान है। समुद्र तल में 10 इंच बढ़ोतरी का अर्थ है, तटीय क्षेत्र और द्वीप जलमग्न हो जायेंगे। अगर ऐसा होता है तो इन इलाकों में जनजीवन तबाह हो जाएगी। साथ ही बड़े पैमाने पर शरणार्थियों के उमड़ आने का खतरा होगा। 

ग्लेशियर के पिघलने के शुरुआती प्रभाव 

तेजी से पिघलते बर्फ के कारण ग्लेशियरों से निकालने वाली नदियों में हर साल तापमान परिवर्तन के साथ ही बाढ़ की स्थिति बनी रहती है। भारत में बाढ़ का संकट हर साल गहराता जा रहा है। बाढ़ के पानी से खेती नष्ट हो जाती है। इससे जान-माल की क्षति तो होती ही है, इसके बाद रोग का खतरा बढ़ जाता है। हर साल बाढ़ के कारण मरने वाले लोगों और जीव जंतुओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। ग्लेशियरों के पिघलने और बनाने में असंतुलन की स्थिति से जल चक्र बुरी तरह प्रभावित होता है जिससे अलग अलग क्षेत्रों में असमान वर्षा एक साथ कहीं बाढ़ कहीं सूखा की स्थिति पैदा करती है। नदियों का पानी समुद्र में पहुँचने पर समुद्र तल ऊपर उठ रहा है जिससे तटीय क्षेत्र सिकुडते जा रहे हैं। 1970 से 2014 के बीच आर्कटिक की 40 प्रतिशत बर्फ पिघल चुकी है जिससे समुद्र के जलस्तर और तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है। 

ग्लेशियर के पिघलने के दूरगामी प्रभाव 

ग्लेशियरों के लगातार पिघलने के कारण छोटे ग्लेशियरों के बहुत जल्दी खत्म होने की आशंका है। इन ग्लेशियरों से निकालने वाली नदियों का क्षेत्रफल लगातार घटता जा रहा है। हिमालय से निकालने वाली नदियों और इनसे जुड़ी मौसमी अफवाह की नदियों के ऊपर लगभग 80 करोड़ लोग निर्भर हैं। पेय जल, दैनन दिन के कार्यों, खेती के सिचाई, जल द्वारा विद्युत उत्पादन के लिए जल की पूर्ति इन्ही नदियों द्वारा होती है। भूमिगत जल की मात्र भी आस पास के नदियों में प्रवाहित हो रहे जल के मात्र से प्रभावित होती है। नदियों के सूखने का सीधा प्रभाव आम लोगों के जीवन स्तर और रहन सहन पर पड़ता है। जल की भारी कमी से पेय जल, खेती नष्ट होने, लगातार अकाल की वजह से भूमि बंजर होने की समस्या कई स्थानों पर दिखाई दे रहे हैं। वर्तमान में, हमारे देश के कई क्षेत्र सूखे से ग्रस्त हैं। भारत का 68प्रतिशत हिस्सा सूखा प्रभावित इलाका है जिसमें हर साल लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा सूखे से प्रभावित रहता है। इससे हर साल लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार 1997 के बाद से देश में सूखा ग्रस्त क्षेत्र 57 प्रतिशत तक बढ़ गया है। 

हिमालय से निकालने वाली गंगा, यमुना, ब्रम्ह्पुत्र, सिंधु जैसी बड़ी नदियों के पानी में भी कमी मापी गयी है। उत्तर प्रदेश में नर्मदा, यमुना, टोंस, बेतवा, मन्दाकिनी और बाकी छोटी नदियों के आस पास के क्षेत्र पानी का संकट झेल रहे हैं। कई नदियाँ बालू रोड़ी खनन क्षेत्र में परिणित हो गयी हैं। 

हिन्दू-कुश हिमालय के पिघलने के परिणाम 

हिन्दू-कुश हिमालय के ग्लेशियर अंटार्क्टिका और ग्रीनलैंड के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। बढ़ते ग्लोबल वर्मिग के कारण 2100 तक इसका दो तिहाई हिस्सा गायब हो सकता है। हिन्दू कुश क्षेत्र, माउंट एवरेस्ट और के2 का घर इन सभी ग्लेशियरों का काफी महत्व है। इसमें 8 देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में 3500 किमी का क्षेत्रफल शामिल है। इन ग्लेशियरों से दुनिया की 10 महत्वपूर्ण नदियाँ निकलती हैं, जिसमें गंगा, सिंधु, मेकांग और म्यांमार की इरावड़ी शामिल है। इसके अतिरिक्त येलो नदी और या हुआंग, जो एशिया की दूसरी सबसे लम्बी नदी है, भी शामिल हैं।  

आईसीआईएमओडी के फरवरी 2019 के एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव खतरनाक पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले 250 करोड़ लोगों और इनकी घाटियों में रहने वाले 1.65 अरब अन्य लोगों के लिए भी भयानक हो सकता है। इसमें सबसे अधिक नुकसान गरीब जनता का होने वाला है। 

-सुधीर कृष्णदेव तिवारी

No comments:

Post a Comment