Monday, 18 March 2019

केरल में बाढ़ का कहर


अक्टूबर महीने में नौजवान भारत सभा के साथी बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए दिल्ली से राहत सामग्री लेकर केरल गये। मैं भी इस टीम का हिस्सा था। केरल के साथियों ने इस काम में हमारा बहुत सहयोग किया। हमने केरल के गाँवों का दौरा किया। तबाही का मंजर हमारे सामने था। जितना हमसे बन पड़ा, हमने बाढ़ पीड़ितों की उतनी मदद की। केरल की बाढ़ के बारे में हमें जो जानकारी मिली, उसे मैं इस लेख में साझा कर रहा हूँ। इसके साथ ही मैं इस बाढ़ के कारणों पर भी अपनी बात रखूँगा।

देश की दक्षिणपश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्यद्रि पर्वत शृंखलाओं के बीच सुन्दर प्रदेश केरल स्थित है। लेकिन लगता है कि उसकी सुन्दरता को ग्रहण लग गया। अगस्त के महीने में आयी बाढ़ ने केरल के लोगों की जिन्दगी में भूचाल ला दिया। यह पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया। मौसम विभाग ने पहले ही भारी बारिश की चेतावनी दे दी थी। लेकिन सरकार ने इस चेतावनी को गम्भीरता से नहीं लिया और न ही किसी ने भारी बारिश से होने वाले भयानक कहर के बारे में ही सोचा था। 8 अगस्त से शुरू हुई बारिश 20 अगस्त तक जारी रही। इस दौरान कुल 771 मिलीमीटर बारिश हुई। इसने पिछले 94 सालों के सभी रिकार्ड  तोड़ दिये। दूसरे सालों की तुलना में इस साल ढाई गुना अधिक बारिश हुई। इसके चलते सभी बाँधों में पानी भर गया, जिससे प्रशासन को 39 बाँधों के 35 शटर मजबूरन खोलने पड़े। 26 साल में पहली बार इदुक्की बाँध के सभी 5 द्वारों को खोलना पड़ा। इससे नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ गया। नदियाँ अपने तटों से ऊपर बहने लगीं। नदियों के किनारे बसे गाँवों में पानी तेजी से भरता चला गया। राज्य के 14 में से 13 जिले बारिश से प्रभावित हुए। इसमें इडुक्की, कोट्टायम, एरनाकुलम, पलक्कड़ और 9 अन्य जिले शामिल हैं। कुछ जिलों में भूस्खलन भी हुआ।
  
केरल के स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले उन्हें हालात की भयावहता का अंदाजा बिलकुल भी नहीं था। लेकिन बाँध खोलने के 4 घंटे बीततेबीतते पानी कंधों तक पहुँच गया। लोगों को इतना समय भी नहीं मिला कि वे अपने सामान को सुरक्षित स्थानों पर ले जा पाते। वे जैसेतैसे अपनी जान बचाकर निकलने के प्रयास में लग गये। जल स्तर इतनी तेजी से बढ़ा कि पानी पहली मंजिल से ऊपर बहने लगा। इससे लोग अपने घरों की छतों पर 23 दिनों तक फँसे रहे। 123 साल पुराने मुल्लपेरियार बाँध के खोले जाने से पेरियार नदी के जल स्तर में तेजी से वृद्धि हुई। इससे लोगों को भारी तबाही का सामना करना पड़ा। इस दौरान पूरे प्रदेश भर में लगभग साढ़े तीन हजार राहत शिविर चलाये गये, जिसमें 10 लाख से अधिक लोगों ने 15 दिन से अधिक समय तक शरण ली। केरल के मुख्यमंत्री के अनुसार बाढ़ में 483 लोगों की मौत हो गयी।

इस बाढ़ से केरल का 80 प्रतिशत क्षेत्र गम्भीर रूप से प्रभावित हुआ। राज्य के बाढ़ प्रभावित इलाके में बिजली की आपूर्ति बाधित रही जिससे पूरा राज्य बाढ़ के साथ ही अंधकार में भी डूब गया। कोचिन की सभी हवाई उड़ानों को 26 अगस्त तक के लिए स्थगित करना पड़ा। राज्य के सारे स्कूलकॉलेज बन्द कर दिये गये। पर्यटकों का बाढ़ प्रभावित इलाके में जाना प्रतिबंधित कर दिया गया। रेलवे सेवाएँ भी रद्द कर दी गयीं। हजारों किलोमीटर की सड़क टूटकर बह गयी। लोगों की घरेलू वस्तुएँ, बाइक, कार आदि सामान बहकर समुद्र में चले गये। प्रदेश की यातायात व्यवस्था कुछ दिनों के लिए पूरी तरह ठप्प हो गयी। 11 हजार घर ढह गये और 46 हजार हेक्टेयर से भी अधिक की फसल पूरी तरह तबाह हो गयी। राज्य सरकार के अनुसार इस तबाही में कुल 20 हजार करोड़ रुपये की सम्पत्ति नष्ट हो गयी।

मीडिया के जरिये इस तबाही की खबर जल्दी ही देशदुनिया के कोनेकोने तक पहुँच गयी। केरल के लोगों की जिन्दगी तबाह  हो गयी थी। उसे फिर से पटरी पर लाने के लिए राज्य सरकार ने केन्द्र से मदद की गुहार की। केन्द्र सरकार ने कुल मिलाकर लगभग 600 करोड़ की ही मदद की, इतने बड़े विनाश को देखते हुए यह रकम बहुत कम थी। फिर भी देशदुनिया के लोग मदद के लिए भारी संख्या में सामने आये। केरल के हजारों मछुआरों ने लोगों की मदद के लिए जान की बाजी लगा दी। उन्होंने अपनी नाव और सरकारी डोंगियों के माध्यम से बाढ़ में डूबे इलाके से लोगों को निकाल कर राहत शिविर में पहुँचाया। इसी कड़ी में नौजवान भारत सभा के भी कुछ साथियों ने केरल जाकर बाढ़ पीड़ितों की मदद का फैसला किया। हमारे साथियों ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और दिल्ली के कई इलाकों की जनता से मदद की अपील की। लोगों ने बढ़चढ़कर सहयोग किया।

इस दौरान हमें कुछ अजीब सवालों का सामना भी करना पड़ा। जैसे–– कुछ लोगों का कहना था कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड यानी उत्तर भारतीय लोग केरल की मदद क्यों करें? इस तरह की क्षेत्रवादी सोच देश की जनता की एकता को खत्म कर देती है। ऐसी सोच देश के लिए बेहद घातक है। कुछ संगठनों और पार्टियों ने झूठी बात फैलाने की कोशिश की कि केरल के लोग गाय का मांस खाते हैं इसलिए वहाँ ऐसी आपदा आयी। इन्होंने केरल की मदद का भी विरोध किया। ऐसे लोगों ने यह खबर भी फैलायी कि कोर्ट ने सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दिया। इससे बाढ़ आयी। ऐसी झूठी अफवाहें फैलाने वाले लोग अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं और जनता से सच्चाई छिपाते हैं। कुछ साल पहले उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी में भी ऐसी भयावह तबाही आयी थी लेकिन उत्तराखंड के लोग गाय का मांस तो नहीं खाते। फिर वहाँ बाढ़ क्यों आयी? ऐसी बेसिरपैर की बातों को हवा देकर केरल के लोगों को बदनाम करने की कोशिश की गयी। केरल एक विकसित राज्य है, जहाँ 99 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। उसके विकास में मौजूदा राज्य सरकार का बड़ा योगदान है। इस सरकार को बदनाम करने के लिए भी विपक्षी पार्टियों द्वारा झूठी खबरें फैलायी गयीं।

13 अक्टूबर को हम कोट्टायम जिले के एडत्वा क्षेत्र में पहुँचे। दो महीने बाद भी बाढ़ का पानी खेतों से उतरा नहीं था। खेतों में 23 फीट पानी भरा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि समुद्र खेतों तक फैल आया हो। स्थानीय किसानों ने बताया कि इस क्षेत्र से बहुत बड़ी मात्रा में धान की आपूर्ति होती है। इसलिए इस क्षेत्र को धान का कटोराकहा जाता है। उन्होंने आगे बताया कि बाढ़ से धान की सारी फसल चैपट हो गयी। पूरे खेत में पानी और जलकुम्भी की भरमार के चलते अक्टूबर में धान की दूसरी फसल भी नहीं रोपी जा सकी। लोगों ने बताया कि सरकार ने एक एकड़ की फसल तबाह होने पर 5000 रुपये और घर तबाह होने पर 10 हजार रुपये की मदद की। नुकसान को देखते हुए यह रकम बहुत ही कम थी।

केरल में आयी बाढ़ का असली कारण क्या है? इसके लिए भारी बारिश और केरल में मौजूद बड़े बाँध काफी हद तक जिम्मेदार हैं। यह हमेशा विवाद का विषय रहा है कि बाँध बड़े होने चाहिए या छोटे? दुनिया भर में देखा जाये तो 19000 बड़े बाँधों के साथ चीन पहले स्थान पर है जबकि 5500 बाँधों के साथ अमरीका दूसरे स्थान पर। इस कड़ी में भारत पाँचवे स्थान पर है। पर्यावरण को होने वाले नुकसान के चलते जहाँ कुछ देशों ने बड़े बाँधों के निर्माण पर रोक लगा दी है, वहीं भारत में बड़े बाँधों का निर्माण धड़ल्ले से जारी है। हमारे यहाँ बड़े बाँधों को देश का स्वाभिमान और तकनीकी प्रगति से जोड़कर देखा जाता है। हालाँकि पर्यावरण के नजरिये से बड़े बाँध बहुत नुकसानदायक होते हैं। बड़े बाँधों के निर्माण के चलते भारी संख्या में स्थानीय आबादी अपनी जमीन से उजड़ जाती है। जैसे नर्मदा नदी पर बाँध के निर्माण से 245 गाँव पूरी तरह डूब गये। 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए, जिनमें अधिकतर गरीब किसान थे। न तो उन्हें उनकी जमीन का सही मुआवजा दिया गया और न ही उनके पुनर्वास की सही व्यवस्था की गयी। आज भी ये विस्थापित लोग अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। यही हालत उत्तराखंड के टिहरी बाँध की भी है। इसके बारे में पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि इसमें इकट्ठा पानी के भारी दबाव से भूकम्प आने की सम्भावना बढ़ गयी है।

बड़े बाँध से विशाल इलाका पानी में डूब जाता है। इससे बड़ी संख्या में पेड़पौधों और जीवजन्तुओं का खात्मा हो जाता है। यह कहा जाता है कि बड़े बाँध बाढ़ को रोकने में मददगार होंगे। हालाँकि छोटीमोटी बाढ़ को रोकने में वे सहायक भी होते हैं। लेकिन बाँध का रखरखाव ठीक से न हो, तलहटी में जमा गाद समयसमय पर साफ न किया जाये और बाँध की दीवारों की मरम्मत न की जाये तो भारी बारिश के समय बाँध के टूटने का खतरा पैदा हो जाता है और ये भयानक तबाही को न्यौता दे सकते हैंं। केरल के इदुक्की और मुल्लपेरियार बाँध के साथ भी कुछ ऐसी ही हालत पैदा हो गयी थी।
2011 में माधव गाडगिल की रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी कि इस इलाके में अंधाधुंध खनन, पेड़ों की कटाई और बाँधों का निर्माण खतरनाक साबित हो सकता है। खास तौर पर खनन के चलते इडुक्की जिले में होने वाले भूस्खलन की ओर चेताया गया था। लेकिन सरकार ने यह रिपोर्ट कूड़ेदान में फेंक दी। यह बात साफ है कि पेड़ों की कटाई, नदियों का सँकरा होते जाना, बाँधों का निर्माण और अंधाधुंध खनन ने भी इस आपदा में भूमिका निभायी। कोई भी राजनीतिक दल या उनके नेता इन कारणों पर बात करने के लिए तैयार नहीं है।

पूरी दुनिया में पर्यावरण की समस्या बढ़ती ही जा रही है। एक ही समय कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं तेज आँधीतूफान तो कहीं खतरनाक बर्फबारी हो रही है। इनमें लाखों लोगों की जिन्दगी तबाह हो रही है। नेता, सरकार और पूँजीवादी बुद्धिजीवी इसे प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं। धर्म के कुछ ठेकेदार इसे आस्था और धर्म का मामला बताकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। बिहार, उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश, केरल आदि जगहों पर आपदाएँ आयीं। इनके बारे में वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने सही कारण बताये और चेतावनी भी दी। लेकिन सरकारों ने इसे अनसुना कर दिया। मीडिया ने ऐसी खबरों को लोगों तक पहुँचाया ही नहीं। सच बात तो यह है कि ये सभी आपदाएँ मानवनिर्मित हैं। विकास की अंधी दौड़ ने इन्हें बुलावा दिया है। विकास का मौजूदा मॉडल ही गलत जिसमें मुट्ठीभर लोग मालामाल होते जा रहे हैं और जनता कंगाल। पर्यावरण प्रदूषण की मार भी इसी गरीब जनता के ऊपर पड़ रही है।

–– नवनीत
(किसान-10 पत्रिका से साभार)

2 comments:

  1. ये लेख किसान पत्रिका के 11वां अंक में है न?

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    1. यह लेख किसान पत्रिका अंक 10 से ही लिया गया है। Amit Bera

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