
औद्योगिक
क्रांति से पहले के मुकाबले आज ग्लोबल वार्मिंग लगभग एक डिग्री सेल्सियस है। महज
एक डिग्री सेल्सियस गर्मी बढ़ने के कारण हम मौसम में भयानक उतार–चढ़ाव, समुद्र का बढ़ता जल–स्तर, पिघलते ग्लेशियर, बेमौसम बारिश से लेकर सूखे जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का भयावह प्रभाव भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में कृषि क्षेत्र् पर पड़ रहा है। भारत में कृषि क्षेत्र् पर सरकारी नीतियों का संकट तो पहले से ही
विद्यमान था परन्तु अब आगे आने वाले सालों में यह संकट और विकराल रूप धारण कर लेगा।
मसलन, तापमान बढ़ने से
भारत की कई मुख्य फसलों की पैदावार प्रभावित होगी। नये प्रकार के कीट–पतंग विकसित होंगे। एक अनुमान के
मुताबिक, जलवायु परिवर्तन
की वजह से चावल, गेहूँ, मक्का और ज्वारी जैसी फसलें सबसे
ज्यादा प्रभावित होती हैं। 2030 तक चावल और गेहूँ की पैदावार में 6–10 प्रतिशत की कमी आने की सम्भावना
है। जाहिर सी बात है कि सीधे–सीधे यह घातक संकट सुल्तानी ही है। पिछले 150 वर्षों में दिल्ली का तापमान
लगभग 1.0 डिग्री सेल्सियस, मुंबई का 0.7 डिग्री, चेन्नई का 0.6 डिग्री और कोलकाता का 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है।
साल 2016
में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में एक सम्मेलन हुआ था। इसी सम्मेलन में आईपीसीसी को
जलवायु संकट की स्थिति का पता लगाने की जिम्मेदारी दी गयी थी। यहाँ सबसे बड़ा सवाल
यह उठता है कि महज 1 डीग्री गर्मी बढ़ने की वजह से जलवायु की ऐसी दुर्दशा हो चुकी
है तो पृथ्वी की गर्मी 1.5 या फिर 2 डिग्री तक और बढ़ने से कैसे खराब हालत होगी।
जबकि बात पहले से बढ़ी हुई 1 डिग्री की गर्मी को कम करने की होनी चाहिए।
वैश्विक
तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो खेती चौपट हो जाएगी। पर्यावरण विदों का कहना है कि यदि आईपीसीसी की
इस रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह भारतीय कृषि के लिए घातक साबित होगा। इस रिपोर्ट में मानसून पैटर्न में
बदलाव की आशंका जताई गयी है। इसके साथ गंगा घाटी के सूखे की चपेट में आने की
भविष्यवाणी की गयी है। इससे किसान बेघर और गरीब तबाह हो जाएंगे। हमारे सामने आज
सबसे बड़ी चुनौती कृषि को जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि के खतरों से बचाने की है।
इसके लिए नए शोध करने होंगे और नई किस्में तैयार करनी होंगी। लेकिन चिंताजनक बात
यह है कि इस दिशा में देरी हो रही है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में 2015 जैसी गर्म
हवाओं का प्रकोप बढ़ने की बात भी कही गयी है, यह बेहद चिंताजनक है। क्योंकि 2015 में गर्म थपेड़ों से भारत
में लगभग 2500 लोगों की जान चली गयी थी। भविष्य में पर्यावरण संकट का सबसे ज्यादा
प्रभाव गरीबों पर पड़ेगा। जिनके पास घर नहीं हैं, गर्मी से बचने के साधन नहीं हैं, वे गर्म हवा के थपेड़ों से बड़ी संख्या में मारे जाएंगे।
––कवीन्द्र कबीर
(किसान-10
पत्रिका से साभार)
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