Friday, 20 January 2017

केन्द्र सरकार की पर्यावरण विरोधी नीतियां

पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण विरोधी रुख अख्तियार कर लिया है। पर्यावरण संकट की मार झेल रहे देश को राहत देने के बजाय अब सरकार कम्पनियों को धड़ाधड़ पर्यावरण की मंजूरी देगी। इसके लिए 60 दिन से अधिक समय नहीं लिया जायेगा। देशभर में पर्यावरण संरक्षण के लिए सैकड़ों संगठनों को नकारते हुए यह फैसला लिया गया है। इस फैसले के लागू होने पर पर्यावरण प्रदूषण के लिए कम्पनियों को रोका नहीं जा सकेगा। गौरतलब है कि पर्यावरण प्रदूषण को सबसे अधिक नुकसान निजी कम्पनियाँ पहुँचाती हैं। लेकिन वे लगातार पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं। इन्हीं कम्पनियों को फायदा पहुँचाने के लिए पर्यावरण मानदण्डों की अनदेखी की जा रही है। एक अन्य मामलें में नर्मदा नदी पर बन रहे सरदार सरोवर डैम की ऊँचाई 121–92 मीटर से बढ़ाकर 138–72 मीटर करने का फैसला लिया गया है। यह फैसला कोर्ट और जनता की पूरी तरह अनदेखी करके लिया गया है। इस फैसले से विस्थापितों की सूची में 250,000 लोग और जुड़ गये हैं। जबकि जो पहले से विस्थपित हैं उनका सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद पूरी तरह पुनर्वास नहीं किया गया। पर्यावरण मामले में ही कांग्रेस सरकार ने माधव गाड़गिल द्वारा पेश पश्चिमी घाट की रिर्पोट को कूड़ेदान में डाल दिया था। यह रिर्पोट पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय जनता के पक्ष में थी। उस समय भाजपा ने गाडगिल की रिर्पोट को लागू करने के लिए सरकार से मांग की थी। लेकिन आज वह उसे लागू करने में हीलाहवाली कर रही है। इतना ही नहीं, गोवा की भाजपा सरकार ने भी गाड़गिल की पर्यावरण पर खनन के प्रभाव की रिपाट दबा दी।

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