तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्य के
बँटवारे के बाद से ही राजधानी का सवाल विवाद का मुद्दा बन गया। तेलंगाना को
राजधानी के रूप में हैदराबाद के साथ ही 15
जिले तथा समुद्र तटीय और नदी किनारे के सम्पन्न इलाके मिले जबकि आंध्र प्रदेश को
केवल 10 साल के लिए हैदराबाद के इस्तेमाल की
अनुमति दी गयी। इसी अवधि में उसे अपनी अलग राजधानी बना लेनी है। यानी जिस हैदराबाद
को चन्द्रबाबू नायडू ने अपने सपनों का शहर, यानी
वैश्विक सॉफ्टवेयर केन्द्र में बदल दिया, उसे
10 सालों में छोड़कर नये स्वर्ग का
निर्माण करना पड़ेगा। नायडू ने सॉफ्टवेयर केन्द्र विकसित करने की अपनी ख्याति को
भुनाते हुए सिंगापुर से एक समझौता किया है, जिसके
तहत वहाँ की कम्पनियाँ निजी–सार्वजानिक
साझेदारी में 7500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में 33 हजार हेक्टेयर जमीन पर अमरावती शहर का
विकास करेंगी। यही शहर आंध्र प्रदेश की राजधानी होगा। इससे अर्थव्यस्था का ठहराव
टूटेगा और बदले में वहाँ के निवासियों को जमीन अधिग्रहण, विस्थापन और रोजी–रोजगार में भारी उथल–पुथल का सामना करना पड़ेगा।
पिछले दिनों केन्द्र की भाजपा सरकार ने
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जारी किया, तो
देश–भर में उसका विरोध हुआ। जनान्दोलनों के
दबाव में सरकार ने इस अध्यादेश को वापस ले लिया। इसे ध्यान में रखते हुए नायडू ने
जमीन अधिग्रहण के लिए सुई जेनेरिस नाम की एक योजना बनायी हैं। इसके तहत उपजाऊपन और
मौके–मुआईने के हिसाब से किसानों को एक एकड़
जमीन के लिए 1000, 1200 या 1500 वर्ग गज का प्लाट दिया जायेगा। अमरावती शहर विजयवाड़ा से 40 किलोमीटर दूर तुल्लार मण्डल में बनाया
जायेगा। भूमि अधिग्रहण की इतनी बेहतरीन योजना को अंजाम देने के लिए इलाके में
सरकार ने धारा 144 लगा दी है। भारतीय दण्ड संहिता की इस
धारा के अनुसार अगर 10 से अधिक व्यक्ति उस प्रतिबन्धित इलाके
में एक साथ इकट्ठा होंगे तो उसे दंगा माना जायेगा और आरोपियों को तीन साल की सजा
या जुर्माना हो सकता है। जाहिर है किसान तीन फसली उपजाऊ जमीनें केवल कुछ हजार वर्ग
गज के प्लाट के लिए अपनी मर्जी से नहीं देंगे क्योंकि केवल प्लाट मिल जाने से उनकी
रोजी–रोटी कैसे चलेगी? वे उजड़ कर भूमि हीन मजदूर बन जायेंगे।
जाहिर है कि वे इस परियोजना का विरोध करेंगे। इसको देखते हुए धारा 144 लगायी गयी है। जिसके दम पर किसानों से
जबरन जमीनें छीनने की कवायद शुरू हो गयी है। किसान और गैर–खेतिहर आबादी ने इसका विरोध भी शुरू कर
दिया है।
इलाके में छोटे दुकानदार, ठेले–खोमचे वाले बहुत खुश हैं, क्योंकि
जब यहाँ सड़कें और बिल्डिंगें बनायी जाएँगी तो उनकी दुकान भी चल पड़ेगी। लेकिन इस
योजना का असली फायदा कॉर्पाेरेट और उद्योग जगत को होगा, उनकी ठहरी हुई अर्थव्यवस्था में एक
धक्का लगेगा। सीमेंट, सरिया, कंकरीट और ऑटो उद्योग में कुछ जान आयेगीे। यह योजना नवउदारीकरण के उस
मॉडल पर आधारित है जिसके तहत पिछले 25
सालों से देश में विकास की बयार बहायी जा रही है। दुनिया–भर में इस मॉडल के आधार पर जहाँ भी
विकास का कार्य किया गया,
वहाँ मुट्ठीभर लोगों की सम्पत्ति में
बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिन इससे गरीबी दूर करने के दावे खोखले ही साबित हुए
हैं। इतनी बड़ी परियोजना के लिए जब पुलिस–प्रशासन
के बल पर विशाल भूभाग का अधिग्रहण किया जायेगा तो खेतिहर और गैर–खेतिहर लोगों के विस्थापन और बुरे
दिनों के बारे में कौन सोचेगा? क्या
राष्ट्र उनके साथ खड़ा होगा? यह
एक अनुत्तरित सवाल नहीं है। इससे पहले भी राष्ट्रीय स्तर की परियोजनाओं में गैर–कृषक आबादी को हाशिये पर धकेल दिया गया।
सड़कों के किनारे और रेलवे लाइनों के आस–पास
झुग्गी–झोपड़ियों में गरीबी और तंगहाली के दिन
गुजारते लोग आखिर कौन हैं? वे
विकास की आँधी में उजाड़ दिये गये लोग हैं, जिनके
लिए इस विकास मॉडल में कोई जगह नहीं।
आधुनिक तरीके से अमरावती शहर के
निर्माण के लिए अगले कुछ महीनों में एक करोड़ से भी अधिक पेड़ काटे जायेंगे यह न केवल वन संरक्षण नियम का खुला उल्लंघन है
जिसके अनुसार काटे गये वन क्षेत्र से दुगुनी जमीन पर वन लगाना जरूरी है, बल्कि विविधतापूर्ण जंगल को नष्ट करना भी है। जिसमें सागौन, नीम और चन्दन के पेड़ों के साथ छोटे
तालाब, पेड़–पौधे, जानवर, पक्षी और तमाम जीव–जन्तु
खत्म हो जायेंगे जो किसी इलाके में पर्यावरण सन्तुलन के लिए बहुत जरूरी होते हैं।
इससे होनेवाले पर्यावरण विनाश की बस कल्पना की जा सकती है। हाल में चेन्नई बाढ़ ने
सैकड़ों लोगों को निगल लिया और हजारों लोगों से आसरा छीन लिया। वहाँ पीने के पानी
और गटर के पानी में कोई अन्तर नहीं रह गया है। सरकारी सहायता के नाम पर बस कुछ
खाने के पैकेट बाँटे गये। अमरावती शहर बसाने में पर्यावरण कानूनों की पूरी तरह
धज्जी उड़ाते हुए विनाश को न्यौता दिया जा रहा है। पर्यावरण विनाश के चलते बाढ़, सूखा, बीमारी और विस्थापन की समम्स्या से लोगों की जिन्दगी दूभर हो जाएँगी।
लेकिन आज शासक वर्ग के पास विकास का इससे अलग कोई दूसरा मॉडल नहीं है जिसमें
पर्यावरण का विनाश न हो और गरीबों को विकास की राह का रोड़ा या दुश्मन न समझा जाये।
विकास के ऐसे मॉडल के लिए,
जिसमें भारत की व्यापक जनता की
सहभागिता हो और प्रकृति का संरक्षण भी हो, हमें
एक नये समाज का निर्माण करना होगा।
––विक्रम प्रताप
Desh
videsh 22 se sabhar
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