Thursday, 30 April 2015

तीसरी दुनिया के देशों में अमीर देशों का कूड़ा-कचरा

पूँजीवाद पर्यावरण का विनाश करता है और साथ ही वह पिछड़े देशों की गरीब जनता को अपने कुकर्मों का फल भोगने के लिए मजबूर करता है। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्राी लॉरेन्स समर्स ने दिसम्बर 1991 में एक अन्दरूनी पत्र जारी किया था जिसका खुलासा ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट के 8 फरवरी 1992 के अंक में प्रकाशित हुआ। उसमें कहा गया था कि विश्व बैंक को धनी देशों की प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों को अल्पविकसित देशों में विस्थापित करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। उसमें यह भी कहा गया था कि कम मजदूरी वाले गरीब देशों में धनी देशों का जहरीला कचरा निपटाने में कोई दोष नहीं है। उसका तर्क था कि स्वास्थ्य और सौन्दर्यबोध के लिहाज से स्वच्छ वातावरण के हकदार वे ही हैं जिनकी आय बहुत अधिक हो। इसका सीधा अर्थ यह है कि साम्राज्यवादियों की निगाह में तीसरी दुनिया की गरीब जनता की जान बहुत सस्ती है, इसलिए पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा उनका शोषण करना कोई गुनाह नहीं है। लेकिन उनका यह शैतानी रवैय्या केवल तीसरी दुनिया के बारे में ही नहीं है। अपने देशों की गरीब जनता के प्रति नस्लवादी भेदभाव करने और उनकी जिन्दगी नरक करने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं होता। अमरीका के लॉस एंजेल्स शहर में जो सबसे गन्दे और प्रदूषित इलाके हैं वहाँ उस शहर के 70 प्रतिशत अफ्रीकी और 50 प्रतिशत लातिन अमरीकी मूल के नागरिक रहते हैं, जबकि केवल 34 प्रतिशत श्वेत अमरीकी उन गन्दे इलाकों में बसे हुए हैं।
क्या तुम्हें विकास चाहिए? 
हाँ, मुझे विकास चाहिए! 
क्या तुम्हें कैंसर चाहिए?
नहीं, 
मुझे कैंसर नहीं चाहिए!
यह कैसे होगा?
बिना कैंसर के विकास?
हाँ, वो लाने गए हैं
अमरीका से बिना कैंसर के विकास।
जैसे- कई सालों से सरकारें ला रही हैं.
वो भी लायेंगे
विकास!


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