फूल वाले पौधों
में परागण एक जरूरी क्रियाहै । परागण क्रिया हवा, पानी, पक्षियों एवं कीट-पतंगों द्वारा की जाती है । इसमें
मधुमक्खियों प्रमुख भूमिका निभाती हैं । दुनिया की लगभग १०० फसलों में मधुमक्खियों
द्वारा ही परागण होता है । हमारे देश में पांच करोड़ हैक्टर फसलों का परागण
मधुमक्खियों पर निर्भर है । दुनिया भर में मधुमक्खी परागित फसलों का मूल्य लगभग एक
हजार अरब रूपए है ।
दुर्भाग्यपूर्ण है
कि कृषि के लिहाज से महत्वपूर्ण मधुमक्खियों पर कई प्रकार के खतरे मंडरा रहे हैं । मधुमक्खियों की संख्या घटने के साथ-साथ
उनके छत्तों की संख्या भी कम हो रही है । पिछले ६-७ वर्षोंा में दुनिया भर में
लगभग एक करोड़ से ज्यादा छत्ते नष्ट हुए हैं । युरोप के कई देशों में छत्तों के
नष्ट होने की दर ३० प्रतिशत आंकी गई है ।
संख्या में लगातार
आ रही कमी के कई भौतिक, रासायनिक व जैविक कारण हैं । कीटनाशकों का
बढ़ता प्रयोग इनकी संख्या पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है । नियोनिकोटिनइड युक्त
कीटनाशी संख्या घटाने में ज्यादा असरकारी साबित हुए हैं । यह रसायन प्रजनन को
प्रभावित करता है और मधुमक्खियां भ्रमित होकर अपना रास्ता भूल जाती है ।
कीटनाशियों के प्रतिकूल प्रभाव का मामला यू.उस. की अदालत में मार्च २०१३ में चार
मधुमक्खी पालकों ने दायर किया है ।
डिस्पोजेबल कप का
उपयोग भी मधुमक्खियों की संख्या में कमी का एक कारण बन गया है । मदुरैकामराज
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकां ने मई २०१० से एक वर्ष तक पांच कॉॅफी हाऊस में
अध्ययन किया । इन कॉफी हाऊस में रोजाना १२०० से ज्यादा डिसपोजेबल कप फेंके जाते थे
। शकरयुक्त पेय पदार्थोंा की थोड़ी मात्रा इनमें शेष रह जाती थी । इससे मधुमक्खियां आकर्षित होकर उनका सेवन
करती थी । सेवन के बाद या तो वे फूलों पर जाना भूल जाती थीं या वहीं चिपककर मर
जाती थीं । चाय एवं कॉफी में उपस्थित कैफीन इन्हें भ्रमित भी करता हैै ।
औद्योगिक कार्योंा, खनन एवं पेट्रोलियम शोधन के कामों में उपयोगी सेलेनियम के
कारण भी इन पर विपरित प्रभाव हो रहा है । लार्वा अवस्था सेलेनियम के प्रति ज्यादा
संवेदनशील देखी गई है । सेलेनियम के प्रभाव से लार्वा की परिवर्धन क्रिया धीमी हो
जाती है एवं मोत भी संभावित है । सेलेनियम मधुमक्खियों में परागकण एवं मकरंद
द्वारा पहंुचता है । छत्तों में भी सेलेनियम की उपस्थिति का आकलन किया गया है । एक
अध्ययन के मुताबिक मोबाइल टॉवर्स एवं सेलफोन से पैदा विकिरण के प्रभाव से भी
मधुमक्खियोंकी संख्या में गिरावट आई है । विकिरण के प्रभाव से मजदूर मक्खियों के
छत्तों पर नहीं पहुंचने से वहां पनप रही अवयस्क मक्खियों की देखभाल नहीं हो पाती
है जिस कारण वे मर जाती हैं ।
कीटनाशियों के
नियंत्रित उपयोग एवं विकिरण की रोकथाम के साथ-साथ बरगद एवं पीपल जेसे वृक्षों को
बचाना भी जरूरी है जिन पर छत्तें बहुतायात में पाए जाते हैं । फरवरी २०१३ में
बेंगलोर में आयोजित चौथी अंतर्राष्ट्रीय कीट विज्ञान कांग्रेस में ३५ देशों के
वैज्ञानिकों ने एक पस्ताव पारित किया थ कि बैगलोर के आसपास के कुछ गावोें मे लगे
बरगद एवं पीपल के उन वृक्षों को बचाया जाए जिन पर सैकडो़ छत्ते लगे है ।
-डॉ. ओ.पी. जोशी
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