उद्योग, यातायात
के साधन, ऊर्जा संयन्त्रा और नगरपालिका के कचरे से
निकलने वाली गैसें लगातार हवा में घुल रही हैं। इन विषैली गैसों की चपेट में आकर
हर साल दुनिया भर में 24 लाख लोग ठण्डी मौत मरते हैं। वायु प्रदूषण से साँस लेने
में दिक्कत, अस्थमा, वातस्फीति, श्वसन
एलर्जी, फेफड़े और हृदय सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं।
भारत में 80 प्रतिशत ऊर्जा का उत्पादन कोयले से होता है जिससे होने वाले प्रदूषण
से हर साल 3 लाख लोग अपनी जिन्दगी से हाथ धो देते हैं। पूँजीवाद के विकास की बात
करते समय उसके अन्धेरे पहलुओं पर लोग बात करने से कतराते हैं, लेकिन
सच्चाई यह है कि अधिक मुनाफा कमाने
के लिए पूँजीपति पर्यावरण सम्बन्धी नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हैं। पैसा
बचाने के लिए वे फैक्ट्री से निकलने वाले गन्दे पानी की सफाई के लिए जल-शोधक
संयन्त्रा लगाने के बजाए उसे नदी-नालों में बहा देते हैं। यहाँ तक कि वातावरण को
जहरीली गैसों से बचाने के लिए वे चिमनियों में फिल्टर तक नहीं लगाते हैं।
जहरीली गैसों की फैक्ट्रियों ने कई दिल दहला
देने वाले हादसों को जन्म दिया है। 1952 में लन्दन शहर में खतरनाक धुएँ की चपेट
में आकर 6 दिन में एक हजार लोग मारे गये और अगले महीने 8 हजार लोग मौत के शिकार
हुए। ऐसे ही हादसे, रूस के स्वेर्दलोवस्क, अमरीका
के डोनोरा, पेन्नसिल्वेनिया और भारत में भोपाल गैस काण्ड
के दौरान हो चुके हैं। अमरीकी यूनियन कार्बाइड कम्पनी में सन् 1984 के दौरान गैस
रिसाव होने से भोपाल के लाखों लोगों की जिन्दगी तबाह हो गयी। बार-बार कर्मचारियों
और पत्रकारों की चेतावनी के बावजूद नेताओं और कम्पनी के अधिकारियों की मिलीभगत ने
छोटे-मोटे रिसाव को अनदेखा करके बड़ी घटना को अन्जाम दिया। आज भी इसके जख्म देश की
छाती पर महसूस किये जा सकते हैं। जुलाई 2010 में मुम्बई बन्दरगाह के सेवरी
औद्योगिक क्षेत्र में गैस रिसाव से 76 लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये। एस्बेस्टस
जो कई देशों में प्रतिबन्धित है,
क्योंकि यह साँस की बीमारी और कैंसर को
बुलावा देता है, लेकिन हमारे देश में इसका उत्पादन बेरोकटोक
जारी है। विरोध करने वाले स्थानीय लोगों का सरकार दमन करती है ताकि कम्पनियों का
मुनाफा जारी रहे।
दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड
उत्सर्जित करने वाला अमरीका वायु प्रदूषण के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी
सबसे अधिक जिम्मेदार है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव दूरगामी होता है जो वायू
प्रदूषण के तात्कालिक प्रभाव से कहीं ज्यादा घातक है। वाहनों से निकलने वाला धुआँ
दुनिया भर में वायु प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है। निजी मोटर कार रखना उच्च और
सम्पन्न मध्यम वर्ग की शानो-शौकत का प्रतीक है जबकि 70 प्रतिशत वायु प्रदूषण के
लिए गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ ही जिम्मेदार है।
हमारे देश में पिछले 20 वर्षों में वाहनों से
होने वाले प्रदूषण में आठ गुनी और औद्योगिक प्रदूषण में चार गुनी वृद्धि हुई है
जबकि आर्थिक विकास में महज ढाई गुने की बढ़ोतरी हुई है। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, मद्रास
और अन्य बड़े शहरों में वायु प्रदूषण सारी हदें पार कर चुका है। बंगलोर को अस्थमा
की राजधानी कहा जाने लगा है। अध्ययन बताता है कि यहाँ के 60 लाख निवासियों में से
10 प्रतिशत लोग और 18 वर्ष से कम उम्र के 50 प्रतिशत बच्चे वायु प्रदूषण से होने
वाली बीमारियों के शिकार हैं। मात्र हवाई जहाज से निकलने वाली गैसों से हमारे देश
के 8 हजार लोग हर साल मारे जाते हैं। पिछले 20 वर्षों के दौरान होने वाले तीव्र
पूँजीवादी आर्थिक विकास की यह तस्वीर कितनी विद्रूप और घिनौनी है, फिर
भी पूँजीवादी मीडिया और कलम घिस्सू बुद्धिजीवी हमेशा इस सच्चाई पर पर्दा डालते
हैं।