Saturday, 2 February 2019

प्लास्टिक कचरे के आयात में उछाल



पूरी दुनिया के पर्यावरण विनाश में प्लास्टिक कचरे का काफी हाथ है। भारत में एसे कचरों की ढेर जगह-जगह दिखाई पड़ती है। कोढ़ में खाज यह है कि हमारे देश में न केवल बड़े पैमाने पर आयात होता है बल्कि इसमें तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। 2016-17 में 12,000 तन प्लास्टिक बोतल और फ्लेक कचरा आयात हुआ था जो 2017-18 में चार गुना बढ़कर 48,000 तन हो गया। 2018-19 कि पहली तिमाही में ही 25,000 प्लास्टिक कचरे का आयात हो चुका है।     

भारत में प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबन्ध है, लेकिन कानूनी छल-छिद्र का इस्तेमाल करके लगातार विदेशों से कचरा मंगाया जा रहा है। ये कचरे चीन, इटली, जापान और मलावी से आते हैं जिसको गलाकर दुबारा और प्लास्टिक के समान बनाए जाते हैं।

सरकार और प्लास्टिक उद्योग के अनुमान के मुताबिक भारत में 1.3 करोड़ टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है और 90 
लाख टन कचरा पैदा होता है। जबकि सिर्फ 40 लाख टन कचरा ही दुबारा इस्तेमाल किया जाता है। हमारे यहाँ यह काम सबसे गरीब लोग करते हैं जो कूड़े के ढेर से प्लास्टिक छाँट-बीन कर कबाड़ी को बेचते हैं। पिछले दिनों ऐसे कबाड़ पर सरकार ने जीएसटी लगा दिया था, जिसके चलते उन लाखों गरीबों का आखिरी सहारा भी छिन गया था। कहाँ तो सरकार इस काम को प्रोत्साहित करती, कचरे कि छँटाई करके उसे दुबारा इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करती, उल्टे उसने इस काम में लगे कंगाल लोगों कि पेट पर लात मारने का काम किया।



सरकार ने 2015में प्लास्टिक कचरा, खास कर प्लास्टिक बोतल के आयात पर रोक लगायी थी। उसके पीछे देश के भीतर मौजूदा प्लास्टिक कचरे के दुबारा उपयोग को बढ़ावा देना था। लेकिन 2016 में विशेष आर्थिक क्षेत्र की  फैक्ट्रियों को इसके आयात की छुट दे दी। इसी का लाभ उठाते हुए कचरा आयात करने वालों ने पहले से भी ज्यादा तेजी दिखाई। नतीजा यह कि घरेलू कचरा बिनने- छाँटने और दुबारा इस्तेमाल के लिए फैक्ट्रियों को आपूर्ति करने वाले कबाड़ियों और कचरा बिनने वालों का धंधा तो चौपट हुआ ही, हमारे अपने देश में कचरे के दुबारा इस्तेमाल में भी कमी आयी। इसका सीधा मतलब है कि हमारे रहनुमा पर्यावरण के विनाश को बढ़ावा दे रहे हैं। पर्यावरण सुरक्षा के नाम पर एक तरफ पोलिथीन बैग पर रोक और दूसरी तरफ विदेशी कचरे का आयात, यह दो मुँहापन धरती को नरक में तब्दील करने का सचेत प्रयास नहीं, तो भला क्या है? एक तरफ हमारे शासकों का यह रवैया है, वहीं दूसरी ओर चीन है जिसने अपने यहाँ कचरे के आयात पर कड़ाई से रोक लगा दिया और अपना कचरा भारत को निर्यात कर रहा है।